अम्मा की लाल चूड़ियां
रात को सोते वक्त ही सोच कर सोइ थी कि सुबह जरूर उठ जाउंगी.. अम्मा की आवाज मन के किसी कोने से आ रही थी, “अरे जरूर खा लिया कर , चाहे थोड़ा सा ही, मुहं तो जूठा जरूर करना चाहिए, शगुन होता है”, और मेरे कुछ न कहने पे गुस्सा करती कि “पता नहीं क्या हो गया है आजकल की लड़कियों को, सारा दिन बिना खाये पिए रहने से पेट सूख जाता है” . सरगी खाने का मन तो कभी भी बही होता है पर अब जब अम्मा नहीं रही है तो मन करता है कि उतने प्यार और अधिकार से कोई मुझे सरगी खाने को कहे ! आज अम्मा की बड़ी याद आ रही है, करवाचौथ है न तो अम्मा की तस्वीर बार बार आखों के सामने आ जा रही है..
करवाचैथ का बड़ा इन्तजार रहता था हम सब बच्चो को. अम्मा शाम को हम सबको बाजार ले जाती और हमारी पसंद की चूड़ियां दिलवा देती थी। पता नहीं कितने दिनो से मैं रोज बाजार में दुकानों में सजी हुई रंग बिरंगी चूडिया देखती रहती और सोचती की इस बार जब अम्मा बाजार लाएंगी तो मैं ये वाली चूड़ियाँ लूँगी,. कितनी ही चूड़ियां मेरे मन के कोने में जगह बना के बैठ गई होती थी पर मलती तो एक ही थी न.. मन भी अजीब होता है रोज ही कभी किसी चूड़ियों को ऊपर रख देता कभी किसी और को नीचे. बचपन में ही समझ आ गया था की जरूरी नहीं है कि जो पसंद हो वो सारा का सारा ही मिल जाये.और अगर मिल भी जाये तो पहन तो नहीं पते न सारा का सारा।
अम्मा हमें हमारी पसंद की चूड़ियाँ दिलवा देती और खुद खरीदती थी लाल रंग की चूड़ियां जिन पर सुनहरे रंग के डिज़ाइन बने होते, और तब मैं उसकी पतली-पतली कलाइयों देखती जिनमे पिछले साल से पहनी हुई चूड़ियाँ होती थी.. अम्मा एकदम से टाइट चूड़ियां पहनती थी, केटी थी कि टाइट चूड़ी पक्की चलती है। चूड़ी वाला पतली सी रस्सी में बंधी चूड़ियों को निकलता और अम्मा बैठ जाती चूड़ी पहनने। चूड़ी वाला रस्सी चूड़ी में फंसा के घुमा-घुमा के अम्मा के हाथ से चूड़ियों को चढ़ाता जाता. कई बार तो अम्मा के हाथों से खून के बुँदे भी निकल जाती पर वो चूड़ी पहनी रहती। टाइट चूड़ियां पक्की होती है न , पूरा साल चलती थी. जब भी लाल चूड़ियां देखती हूं तो अम्मा की याद आ जाती है।